ऋग्वेद जगत का प्रथम ग्रंथ और धर्मग्रंथ है। इसके १० मंडल (अध्याय) में १०२८ सूक्त है जिसमें १० हजार श्लोक से अधिक (१०४७२) हैं। ऋग्वेद में कई ऋषियों द्वारा रचित विभिन्न छंदों में लगभग ४०० स्तुतियां या ऋचाएं हैं। ये स्तुतियां अग्नि, वायु, वरुण, इन्द्र, विश्वदेव, मरुत, प्रजापति, सूर्य, उषा, पूषा, रुद्र, सविता आदि देवताओं को समर्पित हैं। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र(७.५९.१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मन्त्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र(ऋ० ३.६२.१०) भी इसी में वर्णित है। संहिता अथवा भाष्य में प्रत्येक मंत्र के ऋषि , देवता, छंद और विनियोग का उल्लेख है। ऋषि का तात्पर्य उस मंत्र के दृष्टा ऋषि से है, यहां देवता का अर्थ है - विषय, यह देवता शब्द के वर्तमान प्रचलित अर्थ से सर्वथा भिन्न है , छंद से तात्पर्य उस सांचे या नाप से है जिसमे वह मंत्र निर्मित है और विनियोग का तात्पर्य प्रयोग से है।
Rigveda is the first granth (scripture) of the world. It has 1028 hymns in its 10 mandalas (chapters) in which there are more than 10 thousand verses (10472). The Rigveda contains about 400 hymns or sukts in various verses (shloks) composed by several sages. These hymns are dedicated to dieties like Agni, Vayu, Varuna, Indra, Vishwadev, Marut, Prajapati, Surya (Sun) , Usha (Morning), Pusha, Rudra, Savita etc. In Rigveda itself, Trimbak-Mantra or Mrityunjaya Mantra (shlok 7.59.12)is described to prevent death. The world-famous Gayatri Mantra(shlok 3.62.10) is also mentioned in Rigved. The sage, deity, verses and appropriation of each mantra are mentioned in the Samhita or Bhashya. Rishi means the seer of that mantra, here devta means field of study, this is completely different from the current prevailing meaning of the word deity, verse refers to the mold or measure in which that mantra is made and appropriation means – Experiment.
अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। अथर्ववेद के सूक्तों का विषयगत विभाजन निम्नलिखित है
(१) भैषज्य सूक्त - इन सूक्तों में रोगों की चिकित्सा और ओषधियों का वर्णन है.
(२) आयुष्य सूक्त - इन सूक्तों में दीर्घ आयु के लिए प्रार्थना की गई है.
(३) पौष्टिक सूक्त - इन सूक्तों में घर बनाने, हल जोतने, बीज बोने, अनाज उत्पन्न करने आदि का वर्णन है.
(४)प्रायश्चित सूक्त - इन सूक्तों में अनेक प्रकार के पाप और निषिद्ध कर्मों के प्रायश्चित का वर्णन है.
(५) स्त्रीकर्म सूक्त - ये सूक्त विवाह तथा प्रेम से संबंधित हैं.
(६) राजकर्म सूक्त - इन सूक्तों का संबंध राजाओं और उन के कार्यों से है. अथर्ववेद का विशेष सूक्त 'पृथ्वी सूक्त' है. इस सूक्त में पृथ्वी को 'माता' कहा गया है. इस के एक मंत्र का अंश है माता पृथिवी पुत्रोह पृथिव्याः. अर्थात् पृथ्वी मेरी माता है और मैं इस पृथ्वी का पुत्र हूं.
Atharvaveda is also called Brahmaveda. Along with the praise of the dietes, there are also mantras for medicine, science and philosophy. The following is the thematic division of the hymns of Atharvaveda
(1) Bhaishajya Sukta - In these hymns, the treatment and medicines of diseases are described.
(2) Ayushya Sukta - In these hymns, prayer has been made for long life.
(3) Nutritious hymns - In these hymns, there is a description of building a house, ploughing, sowing seeds, producing grains, etc.
(4) Atonement hymns - In these hymns, there is a description of atonement for many types of sins and forbidden deeds.
(5) Streekarma Suktas - These hymns are related to marriage and love.
(6) Rajkarma Suktas - These hymns are related to kings and their actions. The special hymn of Atharvaveda is 'Prithvi Sukta'. In this hymn, the earth is called 'mother'. A part of this mantra is ‘माता पृथिवी पुत्रोह पृथिव्याः.’ . That is, the earth is my mother and I am the son of this earth.
यजुर्वेद एक पद्धति ग्रंथ है, जो पौरोहित्य प्रणाली में यज्ञ आदि कर्म संपन्न कराने के लिए संकलित हुआ था. इसीलिए आज भी विभिन्न संस्कारों एवं यज्ञीय कर्मों के अधिकांश मंत्र यजुर्वेद के ही होते हैं. यज्ञ आदि कर्मों से संबंधित होने के कारण यजुर्वेद अपेक्षाकृत अधिक जनप्रिय रहा है. यजुष् के नाम पर ही वेद का नाम यजुष्+वेद(=यजुर्वेद) शब्दों की संधि से बना है। यज् का अर्थ समर्पण से होता है। पदार्थ (जैसे ईंधन, घी, आदि), कर्म (सेवा, तर्पण ), श्राद्ध, योग, इंद्रिय निग्रह इत्यादि के हवन को यजन यानि समर्पण की क्रिया कहा गया है। इस वेद में अधिकांशतः यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं, अतःयह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है।
Yajurveda is a methodical text, which was compiled in the priesthood system for performing Yagya etc. That is why even today most of the mantras of various sacraments and sacred deeds are from Yajurveda only. Yajurveda has been relatively more popular due to its relation to Yajna etc. The name of the Veda is formed from the combination of the words Yajush + Veda (= Yajurveda) in the name of Yajush. Yaj means devotion. The offering of substances (such as fuel, ghee, etc.), karma (service, tarpan), shraadh, yoga, control of the sense organs, etc. is called yajan. Most of the rules and regulations of Yagyas and Havans are in this Veda, so this granth is ritualistic.
सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है और इसके १८७५ मन्त्रों मे से ९९ को छोड़ कर सभी ऋगवेद के हैं। सामवेद का महत्व इसी से पता चलता है कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि -वेदानां सामवेदोस्मि ( मैं वेदो में सामवेद हूं ) , महाभारत के अनुशासन पर्व में भी सामवेद की महत्ता को दर्शाया गया है- सामवेदश्च वेदानां यजुषां शतरुद्रीयम्। सामवेद के आदि आचार्य जैमिनी माने जाते है, वेदव्यास ने अपने शिष्य जैमिनी को सामवेद की शिक्षा दी थी
The Samveda is the smallest of the four Vedas in terms of size and all except 99 of its 1875 hymns belong to the Rigveda. The importance of Samveda is known from this that Shri Krishna has said in the Gita that – ‘वेदानां सामवेदोस्मि’ (I am Samveda among Vedas), the importance of Samveda has also been shown in the Anusashan parv of Mahabharata – ‘सामवेदश्च वेदानां यजुषां शतरुद्रीयम्’ The Acharya of Samveda is considered to be Gemini, Ved Vyas taught Samveda to his disciple Gemini.